शबाना आज़मी एक जानी मानी अभिनेत्री हैं, गीतकार जावेद अख़्तर की पत्नी हैं और शायर जाँ निसार अख़्तर की बहू हैं लेकिन इससे भी पहले वह प्रगतिशील उर्दू के अज़ीम शायर और कवि कैफ़ी आज़मी की पुत्री हैं। वो कैफ़ी आज़मी जिनके बारे में कवि शमशेर बहादुर सिंह ने कहा है कि, “कैफ़ी अपने सुख़न में भावनाओं की पवित्रता, मुहावरे की शुद्धता और भाषा के स्वाभाविक सौन्दर्य और सौष्ठव और इनकी परम्परा की ख़ूबसूरती को बरक़रार रखते हुए एक आम दर्दमन्द इन्सान से एक आम दर्दमन्द इन्सान की तरह मिलते हैं।”
शायर कैफ़ी आम आदमी के शायर थे जिनसे समाज का हर तबका अपना नाता जोड़ सकता है लेकिन शबाना के लिए उनके अब्बा बाकी लोगों से अलग शख़्सियत थे। कैसा महसूस होता है किसी शायर की बेटी होना, यह उन्होंने किताब ‘कैफ़ियात’ में बताया है।
वो कभी दूसरों जैसे थे ही नहीं…
वो कभी दूसरों जैसे थे ही नहीं, लेकिन बचपन में ये बात मेरे नन्हे से दिमाग में समाती नहीं थी… न तो वो ऑफ़िस जाते थे, न अंग्रेज़ी बोलते थे और न दूसरों के डैडी और पापा की तरह पैन्ट और शर्ट पहनते था- सिर्फ़ सफ़ेद कुर्ता-पाजामा। वो ‘डैडी’ या ‘पापा’ के बजाय ‘अब्बा’ थे- ये नाम भी सबसे अलग ही था- मैं स्कूल में अपने दोस्तों से उनके बारे में बात करते हुए कतराती ही थी- झूट मूट कह देती थी- वो कुछ ‘बिजनेस’ करते हैं- वर्ना सोचिए, क्या यह कहती कि मेरे अब्बा शायर हैं? शायर होने का क्या मतलब? यही न कि कुछ काम नहीं करते।
बाप होने के नाते…
बाप होने के नाते तो अब्बा मुझे ऐसे लगते थे जैसे एक अच्छा बाप अपनी बेटी को लगेगा, मगर जब उन्हें एक शायर के रूप में सोचती हूँ तो आज भी उनकी महानता का समन्दर अपरन्पार ही लगता है। वो अपने दुख और ग़म को दुनिया के दुख-दर्द से मिलाकर देखते हैं। उनके सपने सिर्फ़ अपने लिए नहीं, दुनिया के इन्सानों के लिए हैं। चाहे वह झोंपड़पट्टी वालों के लिए काम हो या नारी अधिकार की बात या साम्प्रदायिकता के विरुद्ध मेरी कोशिश, उन सब रास्तों में अब्बा की कोई न कोई नज़्म मेरी हमसफ़र है।
Credit: Rajkamal Prakashan
शबाना आज़मी: “दोस्तों से अब्बा कैफी के बारे में बात करते कुछ कतराती थी”