उठो, देखो वो आँधी आ रही है
ऊफ़ुक़ पर बर्क़ सी लहरा रही है
क़यामत हर तरफ़ मंडला रही है
ज़मीं हिचकोले पैहम खा रही है
उठो, देखो वो आँधी आ रही है
मचलती, झूमती हलचल मचाती
तड़पती, शोर करती, दिल दहलाती
गरजती, चीख़ती, फ़ित्ने उठाती
क़यामत को जगाकर ला रही है
उठो, देखो वो आँधी आ रही है
फ़िज़ा में आतशीं परचम उड़ाती
ज़मीं पर आग के धारे गिराती
शरारे रोलती, शोले बिछाती
सुनहरी रौशनी फैला रही है
उठो, देखो वो आँधी आ रही है
भड़कती, आतिश-ए-सोज़ाँ की सूरत
लपकती शोल:-ए-पर्रा की सूरत
उबलती बह्र-ए-बे-पायाँ की सूरत
उबलकर सर पे आयी जा रही है
उठो, देखो वो आँधी आ रही है
फ़िज़ा कुल जंग का मैदां बनी है
हवा बिफरा हुआ तूफाँ बनी है
ज़मीं गहवार – ए- ज़ुबां बनी है
फ़लक से ख़ाक सर टकरा रही है
उठो, देखो वो आँधी आ रही है
बढ़ी आती है तामीरी तबाही
झुकी पड़ती है नूर-अफ़ज़ा सियाही
झकोले खा रहें हैं क़स्र-ए-शाही
हवा ज़ंजीर-ए-दर खड़का रही है
उठो, देखो वो आँधी आ रही है
बिठा रक्खे हैं पहरे बेकसी ने
ख़ज़ानों के फटे जाते हैं सीने
ज़मीं दहली, उभर आये दफ़ीने
दफ़ीनों को हवा ठुकरा रही है
उठो, देखो वो आँधी आ रही है
निशानात-ए-सितम थर्रा रहे हैं
हुकूमत के अलम थर्रा रहे हैं
ग़ुलामी के क़दम थर्रा रहे हैं
ग़ुलामी अब वतन से जा रही है
उठो, देखो वो आँधी आ रही है