अज़ीब आदमी था वो
मुहब्ब्तों का गीत था
बग़ावतों का राग था
कभी वो सिर्फ़ फूल था
कभी वो सिर्फ़ आग था
अजीब आदमी था वो
वो मुफलिसों से कहता था
कि दिन बदल भी सकते हैं
वो जाबिरों से कहता था
तुम्हारे सर पे सोने के जो ताज हैं
कभी पिघल भी सकते हैं
वो बंदिशों से कहता था
वो बंदिशों से कहता था
मैं तुमको तोड़ सकता हूं
सहूलतों से कहता था
मैं तुमको छोड़ सकता हूं
हवाओं से वो कहता था
मैं तुमको मोड़ सकता हूं
वो ख़्वाब से ये कहता था
कि तुझको सच करूंगा मैं
वो आरज़ू से कहता था
मैं तेरा हमसफर हूं
तेरे साथ ही चलूंगा मैं
तू चाहे जितनी दूर भी बना ले अपनी मंजिलें
कभी नहीं थकूंगा मैं
वो जिंदगी से कहता था
वो जिंदगी से कहता था
कि तुझको मैं सजाऊंगा
तू मुझसे चांद मांग ले
मैं चांद ले के आऊंगा
वो आदमी से कहता था
कि आदमी से प्यार कर
उजड़ रही है ये ज़मीं
कुछ इसका अब सिंगार कर
अजीब आदमी था वो
वो ज़िंदगी के सारे ग़म
वो ज़िंदगी के सारे ग़म
तमाम दुख
हर इक सितम से कहता था
मैं तुमसे जीत जाऊंगा
कि तुमको तो मिटा ही देगा
एक रोज़ आदमी
भुला ही देगा ये जहां
मिरी अलग है दास्तां
वो आंखें जिनमें ख़्वाब हैं
वो दिल है जिनमें आरज़ू
वो बाजू़ जिनमें है सकत
वो होंठ जिनपे लफ़्ज हैं
रहूंगा उनके दरमियां
कि जब मैं बीत जाऊंगा