हाँ यही ताज इसी ताज-ए-अफ़्शां1 की क़सम
हल्क़ा-ए-जब्र2 है मह्कूमी-ए-इंसान3 की क़सम
शर4 का उनवान5 है यह, जंग6 की तमहीद7 है यह
तीरगी8 जिससे बरसती है यह वह ख़ुर्शीद9 है यह
छू के जब इसको हवा झूमती बल खाती है
ख़ुद-ब-ख़ुद आग हर इक सिम्त भड़क जाती है
मर्ग-ए-मैख़ान:10 है गो रौनक़-ए-मैख़ान:11 है
ज़हर ही ज़हर जिसमे, यह वो पैमाना है
इसका साया जो कोई शक्ल बना देता है
उठ के चंगेज़ ख़ुदाई को हिला देता है
सुस्त है नब्ज़-ए-बक़ा12, ज़र्द13 है रू-ए-तौहीद14
कि इस आग़ोश15 में ख्वाबीदा16 है फ़िरऔन-ओ-यज़ीद
उफ़ यह तारीक चमक, उफ़ यह भयानक तन्वीर17
अक्स18 डाले हुए है ज़ार का मनहूस ज़मीर19
नस्ल-ओ-मज़हब का यह रहता नहीं पाबन्द कभी
फ़र्क़ पर जिसके चमक जाये हलाकू है वही
छूट इसकी तन-ए-आहन20 पे जो पड़ जाती है
आग उगलती हुई शम्शीर उभर आती है
इसकी रौनक़21 ने उजाड़े हैं गुलिस्ताँ22 लाखों
इसने बस्ती में बसाए हैं बयाबाँ23 लाखों
काने24 छानी है पहाड़ों के वरक़25 मोड़े हैं
एक हीरे के लिए लाख जिगर तोड़े हैं
घर तो घर शम्अ मजारों की भी बुझ जाती है
जब कहीं इसके नगीनों26 में चमक आती है
सीम-ओ-ज़र27 इसके लिए लाख उबलती है ज़मीं
यह वह कशकोल-ए-गदाई28 है जो भरता ही नहीं
सिद्क़29 को किज़्ब30 सिखाती है हुकूमत इसकी
इल्म31 जहल32 बनाती है सियासत इसकी
यह वह जादू है जो ईमान पे भी चलता है
हस्ब-ए-मन्शा33 इसी सांचे में ख़ुदा ढलता है
खून-ए-हक़34 आके इसी जाम35 में बनता है शराब
जाँकनी36 रक्स37 का पा जाती है रंगीन ख़िताब38
इसका तुर्रा39 जो कभी ग़ैज़40 में बल खाता है
ज़हर सुक़रात के प्याले में छलक जाता है
ज़िन्दगी उट्ठी है ज़ोर इसका मिटाने के लिए
और बढ़ता है कोई ज़र्ब41 लगाने के लिए
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1 – सोना बरसानेवाला ताज 2- अन्याय का घेरा 3- मनुष्य की पराधीनता 4- बुराई, उपद्रव 5- प्रयत्न 6- युद्ध 7- आरम्भ 8- अँधेरा 9- सूर्य 10- शराबघर की मौत 11- शराबघर की शोभा 12- जीवन की नाड़ी 13- पीली, लज्जित 14- अद्वैतवाद का रूप 15- अंक, गोद 16- निद्रित 17- रौशनी 18- परछाईं 19- अन्तरात्मा 20- लौह शरीर 21- शोभा 22- पुष्प उद्यान 23- जंगल 24- खनन 25- पृष्ठ 26- रत्न 27- धन-दौलत 28- भीख का कटोरा 29- सत्यता 30- मिथ्या, असत्य 31- ज्ञान 32- अनपढ़, अज्ञानता 33- इच्छानुसार 34- सच्चा खून, सत्य रक्त 35- गिलास 36- जीवन के अंतिम क्षण 37- नृत्य 38- उपाधि 39- अनोखापन 40- रोष, क्रोध 41- चोट, आघात, प्रहार
Taj